जीना तो तुमनें सीखा ही नहीं
रह गए इसलिए,आज भी तुम वहीं
निकल ना जाये ये वक़्त भी कहीं
चुनलो अब तो राह तुम सही।
हारना तो तुमनें सीखा ही नहीं
जीत गए,छल कर, हर बार तुम यही
निकल गए तुम्हारे साथी,
सच्ची राह में दूर कहीं
अंत में फिर, तुमने ही ये कहां क्यों,
तुम्हारे साथ ये सही हुआ नहीं??
सहना तो तुमनें सीखा ही नहीं
कहने को ना चूके किसको
तुम कुछ भी कही।
ज़िंदगी लेकर आई हैं, देखो
तुम्हे फिरसे वहीं।
अब तो पूरी दुनियां भी कहती
है -तुमने कभी ना करा
कोई भी काम सहीं।
देना तो तुम नें सीखा ही नहीं
लेते गये सबका तुम कुछ भी कहीं।
अब रहगए है तुम्हारे पास
कुछ समान वहीं।
जिसे जोड़ने से पहले
तुमने एक बार ना सोचा
क्या गलत था और क्या सहीं।
Prerna Mehrotra
2/10/2014
sahe likha…sunder rachna